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लेखनी कहानी -22-Jul-2022 ऐतिहासिक दिन

किसी ने सोचा नहीं होगा कि 21 जुलाई, 2022 का दिन भारत के इतिहास में अमर हो जायेगा । इस दिन ऐसी ऐसी घटनाएं घटित होंगी जो अविश्वसनीय प्रतीत होती हैं । किसने सोचा था कि कोई अर्श से फर्श पर आ गिरेगा तो कोई फर्श से अर्श पर विराजमान हो जायेगा । दिनों का क्या है ? एक जैसे थोड़े ना रहते हैं दिन हमेशा । भगवान श्री राम राजा बनते बनते वनवासी हो गये । द्रोपदी पटरानी होकर भी एक रानी की दासी सैरंध्री बन गई । क्या कभी किसी ने ऐसा सोचा था ? पर किस्मत में जो लिखा होता है , वह होकर ही रहता है । 
मगर लोग हैं जो पता नहीं किस अहंकार में चूर रहते हैं । ऐसा नहीं है कि उन्हें पता नही हो , मगर अहंकार है कि छूटता ही नहीं है । यह सर्वविदित है कि अहंकारी रावण का क्या हश्र हुआ था , दुर्योधन की क्या गति हुई थी ? मगर फिर भी लोग अहंकार जैसी चीजों को पाल लेते हैं । अरे, पालने के लिए बहुत सारी चीजें हैं पर पता नहीं लोग अहंकार,  वहम, ईर्ष्या, लालच जैसी चीजें क्यों पालते हैं ? इन चीजों ने किसका भला किया है आज तक ? ये तो विनाश के कारक हैं । मगर कोई मानता ही नहीं है । पाले ही जा रहे हैं । 

दरबारियों , खैरातियों , चमचों, चाटुकारों, भाटों ने "उन्हें" विश्वास दिला दिया कि "आप" तो देश के भाग्य विधाता हैं । आप ही भारत हैं और भारत का अस्तित्व केवल आप से ही है । कहने को इस देश में लोकतंत्र है मगर राजाओं और सुल्तानों की गुलामी की आदत लोगों को ऐसी पड़ी हुई थी कि वह एकदम से कैसे जा सकती है ? समय तो लगता है ना सदियों की गुलामी का जूड़ा उतार फेंकने में । राजा, रानी, राजमाता, युवराज, राजकुमार और राजकुमारी से इतर कोई सोचता ही नहीं । इनके अलावा कोई है ही नहीं । जो हैं वे सब प्रजा हैं , आम आदमी हैं । तो इन लोगों ने यह मान लिया कि भारत पर राज करना उनका जन्म सिद्ध अधिकार है और वे इस अधिकार के द्वारा राजगद्दी हासिल करके ही रहेंगे । 

मगर स्थितियां बहुत बदल गईं हैं अब । अब भारत पहले जैसा देश नहीं रहा जब नंगे भूखे लोग कोड़े खाकर भी कहते थे "आओ रानी , हम उठाऐंगे तेरी पालकी" । और ऐसे लोगों  द्वारा पालकी उठाकर ईनाम में कोड़े खाकर भी आह भरने का कोई अधिकार नहीं था । स्थितियां धीरे धीरे बदल रही थीं मगर दरबारियों ने "राजघराने" को परदे में ही रखा । वही दिखाया जो वे दिखाना चाहते थे । उतना ही सुनाया जितना उन्हें सुनना चाहिए और इतना ही बताया कि आप राजा थे , राजा हैं और राजा ही रहेंगे । अब इसमें बेचारे राजघराने का क्या दोष ? 

दरबारियों ने राजघराने को समझा दिया कि चाहे कितना ही माल कूट लें, चाहे देश पर अपनी तानाशाही लाद कर लोगों को जेल में बंद कर दें । चाहे दुश्मन देशों से चोरी चोरी मिल लें । इन सबके बावजूद उन्हें तो राज ही करना है क्योंकि जनता ऐसा चाहती है । यद्यपि "परिणाम" कुछ और ही कहानी कह रहे थे मगर ऐसा भ्रम बना दिया कि उनको हार तो बस एक "तुक्के" से ज्यादा कुछ नहीं है । मगर फिर से परिणामों ने सबको चौंका दिया था । अब दरबारियो के पास क्या बहाना था ? मगर वो दरबारी ही क्या जो समय पर ढंग का बहाना ना गढ सके । एक से बढकर एक बहाने गढ दिये गये । राजघराना खुश हो गया । दरबारियों का अपना कुछ नहीं होता है । ये हमेशा राजघराने की ओर मुंह ताकते रहते हैं । राजघराने के मुख पर थोड़ी सी मुस्कान आ जाये तो ये दरबारी अट्टहास करके हंसते हैं । यदि "श्रीमन्त" का मुखड़ा क्लांत है तो ये दरबारी नौ नौ आंसू रोते हैं । दरबारियों में होड़ लग जाती है रोने की कि कौन ज्यादा देर तक और ज्यादा जोर से रोता है ? "स्वामीभक्त" होने की यही तो एकमात्र पहचान है कि किसकी "दुम" कितनी हिलती है ? जिसकी दुम सतत हिलती रहती है उसे "चमचा शिरोमणी" घोषित कर दिया जाता है । बाकी लोगों को "चमचा श्री" "चमचा भूषण" जैसे अलंकारों से सुसज्जित कर दिया जाता है । ऐसे अलंकरण लेने के लिए दरबारी लोग "दिन रात" एक कर देते हैं । 

एक दिन एक विकट समस्या उत्पन्न हो गई । एक जांच ऐजेन्सी ने राजघराने को एक नोटिस थमा दिया । चारों ओर हाहाकार मच गया । सारे दरबारी , खैराती , चाटुकार अपने अपने हथियार लेकर मैदान में कूद पड़े । ऐसा पहले कभी नहीं हुआ । किसकी इतनी मजाल थी कि वे राजघराने की ओर निगाहभर कर भी देख ले । ऐसी "गुस्ताखी" नाकाबिल माफी थी । मगर क्या करते ? सत्ता पास में है नहीं । भविष्य में आने की संभावना भी नजर नहीं आ रही है । तो फिर एक ही इलाहै "हंगामा" । सड़क से लेकर संसद तक ।

फिर क्या था , चिल्ल पौंड शुरू हो गई  । "कुकुरहाव" की मधुर ध्वनि से देश गुंजायमान होने लगा । दिग्दिगंत में कोलाहल गूंजने लगा । सारे भाट लोग काम पर लग गये । कुछ लोग "न्याय के देवता" के पास चले गये । इनकी आखिरी उम्मीद "न्याय का देवता" ही है   यद्यपि राजघराना किसी देवी , देवता को नहीं मानता है मगर "न्याय के देवता" पर इनको अटूट विश्वास है । विश्वास हो भी क्यों नहीं ? इनकी "पुकार" ही इतनी दमदार है और इनका "पुरोहित" इतना मंझा हुआ है कि न्याय का देवता मजबूर हो जाता है इन्हें "वरदान" देने के लिए । जब कोई सिद्ध हस्त पुजारी पूजा करता है तो कठोर से कठोर देवता भी प्रसन्न हो जाते हैं । 

मगर इस बार न्याय के देवता ने वरदान नहीं दिया । ऐसी उम्मीद नहीं थी इनको । मगर उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकते हैं तो क्या करें ? नोटिस आया है तो जाना ही पड़ेगा । मगर "राजघराने" को नोटिस देने की हिम्मत कैसे हुई ? जांच ऐजेन्सी पर दरबारी लोग बहुत चिल्लाये । मगर जांच ऐजेन्सी चुपचाप अपना काम करती रही । लोगों ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि राजघराने को नोटिस देने की हिम्मत कोई कर सकता है । पर शायद यह बदलते वक्त का संकेत है कि अब कोई राजा और कोई प्रजा नहीं हैं बल्कि सब राजा और सब प्रजा हैं । 

अब इस पर माथापच्ची होने लगी कि नोटिस पर जांच ऐजेन्सी के समक्ष कब जाया जाये ? बहुत सोच समझकर 21 जुलाई का दिन नियत किया गया । बड़ा अद्भुत नजारा था उस दिन । राजघराने के सदस्यों को यूं आम आदमी की तरह जाते हुए देखकर इस देश की सड़कें भी निहाल हो गईं । उन्होंने तो सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि उनकी वज्र सी कठोर छाती पर कोमल कोमल पैर कभी पड़ेंगे । सड़कें उस स्पर्श से आह्लादित हैं । वे अभी उसी हैंगओवर में झूम रही हैं । वो कुर्सी और टेबल जो राजघराने के स्पर्श से महक उठीं थीं वे इठला इठला कर नृत्य कर रही हैं । यह अभूतपूर्व दृश्य भी अलौकिक आनंद का स्रोत बन गया है लोगों के लिए  । 

दूसरी तरफ एक अत्यंत गरीब, आदिवासी संथाल महिला देश के सर्वोच्च  पद के लिये निर्वाचित घोषित कर दी गई । ये दोनों घटनाएं एक ही दिन घटी हैं और दोनों ही कमाल की घटनाएं हैं । इसलिये 21 जुलाई 2022 का दिन ऐतिहासिक बन गया है और हम सब इसके साक्षी हैं । है न कितने गौरव की बात ! 

श्री हरि 
22. 7. 22 

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7 Comments

Chetna swrnkar

26-Jul-2022 09:59 AM

Bahot khub 👌

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Khan

25-Jul-2022 09:54 PM

😊😊

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Saba Rahman

24-Jul-2022 11:24 AM

Osm

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